अजीब बात है आज रात भर मुझे नींद नही आई बस करवटे बदलता रहा सुबह हो गयी तब जा कर मुझे नींद आयी। आई भी तो घर वालो ने जगा दिया जल्दी से तैयार हो कर ऑफिस आ गया ऑफिस के काम का ओवरडोज़ और नींद न आने के लौवरडोज़ दोनों मिलकर मुझे पूरे दिन भर परेशान करते रहे। जैसे तैसे मैंने आज ऑफिस का टाइम काटा, काटा इसलिए कह रहा हूँ कि आज काम मे मन ही नही लगा बस बोझ लग रहा था। रास्ते मे मेरे दोस्त का गैराज पड़ता है तो उसके पास चला गया कुछ समय बाद हम दोनों चाय के लिए रोड के उस पार चल दिए चाय खत्म ही हो चली थी कि मेरी नज़र उस पर पड़ी उस लड़की पर जो घर आई थी। शायद वह अपने घर ही जा रही थी तो मैंने दोस्त को अलविदा कह के चल पड़ा उसके पास जा कर मैंने अपना बाइक धीरे कर के उससे बोला लिफ्ट चाहिए मैडम? उसने कहा क्या आप हर किसी को लिफ्ट देते है या फिर कुछ स्पेशल लोगो को? थोड़ी देर के लिए मैं आश्चर्य में पड़ गया मैंने सोचा कुछ कहे ही वहा से चला जाऊं पर मैंने पलट के जवाब दिया।
जी नही मेरी यह सेवा ज्यादातर बंद रहती है बीच बीच मे सेवा चालू होती है जिसका कुछ लोगो को लाभ प्राप्त होता है जैसे आज आप हो सकती है अगर आप चाहो। मेरा यह जवाब शायद उस पर मजाक भरा था मुझे लगा शायद वो अब मुझे सुनाने वाली है पर हुआ उल्टा वो रुकने को बोली और पीछे बैठ गयी। मैं घर की तरफ चल पड़ा रास्ते भर खामोशी छाई रही मेरा घर आने ही वाला था मैंने पूछा आपको कहाँ ड्राप करना है उसने कहा बस आपके घर के पास फिर मैं वहाँ से चली जाऊंगी। अगर आप कहो तो आपको घर तक छोड़ दूँ। नही आपको ऐसा करने की जरूरत नही मैं चली जाऊंगी। उसके लहज़े में तल्ख था जो मुझे थोड़ा असहज कर गया मैं उसे अपने घर के पास ड्राप करके घर चला गया। मुझे अच्छा नही लगा मैं बाहर आया और उसके पीछे चलने लगा काफी गैप बना कर चल रहा था जिससे वो न मुझे पहचान पाए और उसे भी किसी तरह की मेरी वजह से कोई परेशानी न उठानी पड़ जाए।
अचानक बारिश सुरु हो गयी वो तो छाता अपने साथ रखी थी पर मैं क्या करता सो भीगते हुए चलने लगा। कुछ और आगे जाने पर उसका घर आ गया वो अपने घर चली गयी मैं वहाँ से धीरे क़दमो से घर लौटने लगा पलट पलट की देखने की ये बीमारी आखिर कैसे होती है। मैं भी देख बैठा वो खिड़की से मुझे देख रही थी मैं रुक गया और उसे देखता रहा और वो मुझे, कुछ देर बाद उसने एक झटके से पर्दा खींच दी। मेरा भ्रम टूटा और भारी क़दमो के साथ घर लौट गया।
तू भ्रम है शायद मेरे जेहन का क्योकि
तुझे छूना चाहूँ तो हर बार टूट जाते हो
दूरियों का सबब मुझे समझ नही आता
जो पास आना चाहूँ तो रूठ जाते हो।।
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मुझे ये नहीं पता की आपको बारिश का पहला भाग कितना पसंद आया लेकिन फिर भी मैं बारिश का दूसरा भाग पोस्ट कर रहा हूँ इस उम्मीद में की शायद आपको पसंद आये उससे भी जरुरी यह है की मैं खुद इस कहानी को पूरा करना चाहता हूँ !
Md. Danish Ansari
बहुत ही अच्छा लिखा है आप की कल्पना भी काविले तारिफ है।
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sukriya
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बारिश का तीसरा भाग भी है। कितने भाग में बांटा गया है। मैं तो आत्मकथा को डायरी में मेंटेन किया है और कुछ ब्लॉग पर भी लिखा है लेकिन बड़ा है इस लिए पब्लिक नहीं किया है। जिंदगी चौराहे पर दो भागों में पब्लिश किया है लेकिन एक साथ न होने से समझ में नहीं आता है।
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हा अक्सर ऐसा ही होता पर मुझे उम्मीद है की पढने वाला व्यक्ति किसी भी एक भाग को पढने पर उसके सभी भागो को पढना पसंद करेगा !
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बहुत सुंदर—-कहानी रोचक है आगे का इंतजार है।
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thank u………. Madhusudan ji
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