हाले दिल

लिख दूँ ऐसा कलाम मैं उसके लिए होंठो पर
मेरे जाने के बाद वो कलमे की तरह पढ़ा करें।
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उसके रुख़्सार पर ढले है मेरी शाम के किश्से
खा़मोशी से पढ़ा हूआ मौहब्बत का कलम़ा है वो,
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उसके रुख्सार पर जो एक मोती ठहरा
मैंने लबो से अपने उन्हें चुन लिया
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गजब का हुनर रखते है जनाब
क़त्ल भी कर देते हो और पता भी नही चलता
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ख़ाक हो जाता है परवाना समां के लिए
तब जा के कही समां महफ़िल को रोशन करती है
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समां पे तो सबकी निगाहें टिकी होती है
मेरी नज़र ख़ाके परवाने को ढूंढती है
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जैसे जैसे ज़िंदगी गुज़ारता हूँ मैं…
लगता है कुछ भी नहीं जानता हूँ मैं…
एक शै है जो हक़ीक़त से कोसों दूर है…
उस फ़लसफ़े को नाहक मुहब्बत मानता हूँ मैं
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कैसे न मर मिटूं मैं उसके हर एक एक कलाम पे
ये वो आईना है जिसमे मेरा अक्श झलकता है।
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काली स्याही से लिखता हूँ दास्ताँ-ए-ज़िन्दगी इन दिनों,
ना सुहाते ये रंग, ना सजने का शौक बाकी अब मुझमें।
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वो लिखता है काली स्याह से अपनी ज़िन्दगी का अफसाना
मैं ये कहता हूँ वो लहू ए जिगर से जिंदगी का हर्फ़ हर्फ़ लिखता है।
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बिछड़ते वक़्त इन आँखों का भर जाना ज़रूरी था,
तुम्हारे बिन मेरा चुप-चाप मर जाना ज़रूरी था
मैं हंस कर झेल लेता दिल पे सारे सितम क़िस्मत के,
मुझे खबर तो कर देती अगर जाना ज़रूरी था
मेरी आँखों में अपने अक्स को तुम देख न पाई,
सो मेरा ‘बे-नियाज़ी’ से गुज़र जाना ज़रूरी था
मैं जीवन के सफर में हंस के सब कुछ सह गया लेकिन,
जो तुम बिछड़े तो फिर मेरा बिखर जाना ज़रूरी था
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ये जो लोग समझते है कि ये शायरी है किसी शायर की असल में ये दो दोस्तों के हाले दिल कि बाते है। अगर दिल को छू जाये जो हमारी बाते तो बस हमारे दिल को सुकून मिले इसकी दुआ है।

 

20 विचार “हाले दिल&rdquo पर;

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