बारिश 6…….

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यूँ ही दिन बीतते गए पता ही नही चला कब उसके शादी का वक़्त आ गया। सच कहूं तो मैं अंदर से लगातार टूट रहा था जैसे जैसे घड़ी की सुइया आगे बढ़ती मैं अंदर से खामोश होता जाता हर बार ये सोचता कि अब मुझे बोल देना चाहिए लेकिन फिर अपना ख्याल बदल देता चाहे कुछ भी हो जाये अब वो सच मैं उसे कभी नही बताऊंगा अब यह सच उसकी शादी के साथ ही मेरे दिल की गहराई में कही दफ़्न हो जाएगी रह जायेगी तो बस उसकी ख़ाक। ये एहसास बड़ा तकलीफ देह है मैं गुस्से मैं भी हूँ पर वो गुस्सा बाहर नही निकाल सकता था। कभी ख्याल आता यहा से दूर भाग जाऊँ पर क्या उससे भी बात बनती जाहिर है नही जो मुझमे बसा हो रूह की गहराई तक उससे भला कैसे दूर भागा जा सकता है। आखिरकार वो वक़्त आ ही गया जब वो किसी और कि हमसफर बनने वाली है मैं वहां से भागना चाहता था पर भागा नही मैं खूब रोना चाहता था इतना कि मैं बयान नही कर सकता ।
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हर एक फेरे के साथ उसके और मेरे दरमियां दूरियां बढ़ जाती और उसके साथ ही एक दीवार ये ऐसी दीवार है जिसे मैं कभी नही तोड़ पाऊंगा कभी नही हर बंधन जो मैं उसके साथ बांधना चाहता था वो किसी और के साथ बंध रहा था। उधर फेरो के साथ दिलों के तार जुड़ रहे थे और इधर हर तार टूट के बिखर रहा था मुझमे खुशी तो बिल्कुल भी नही थी पर फिर भी उसकी महफ़िल में सबसे ज्यादा मैं ही खुश था सिर्फ उसकी खातिर काश वो मेरे आंखों में देख कर मेरे दिल की हर बात जान पाती जैसे मेरी माँ जान जाती है तो शायद मुझे ये तकलीफ न होती शादी के उस माहौल में मैं  इतना व्यस्त था की कुछ सूझ ही नही रहा था कि मैं क्या करूँ क्या करूँ मैं। शादी हो जाने के बाद बिदाई की तैयारी सुरु कर दी गयी मैं उसमे व्यस्त हो गया। तभी बेटा रेहान जी आंटी वो संगीता के रूम में कुछ सामान पड़े है और उसका बैग भी यहाँ बाहर रखवा दो जी आंटी हो जाएगा। मैं अपने कुछ दोस्तों को अपने साथ ले गया उसके रूम से सारा सामान बाहर रखने के बाद मैं उसका बैग लेने अंदर गया तभी उसकी मौसी अपने बच्चे को डांट फटकार रही थी। क्या हो गया मौसी जी क्यों डांट रहे हो बेचारे चिंटू को ! अरे क्या बताओ मैं इन बच्चों की बदमासी से तंग आ गयी हूँ। क्यो अब क्या कर दिया इन्होंने? ये देखो इसने संगीता की डायरी फाड़ दी बैग से निकाल कर अब वो इसे ऐसे देखेगी तो क्या सोचेगी। कोई बात नही मैं उसे बता दूंगा वैसे भी ये बच्चे है इन्हें क्या पता मुझे दीजिये डायरी। सच कहता हूं मुझे वो डायरी कभी कभी भी नही लेनी चाहिए थी और अगर ले भी लिया था तो कभी उसे देखना नही चाहिए था। उन फटे पन्नो को देखते ही और उस डायरी को पढ़ते ही पूरी अब तक कि उसके पहली मुलाकात से अब तक कि पूरी लाइफ किसी हिंदी फिल्म की तरह फ़्लैश ब्लैक में चलने लगी मेरे सामने ये वही थी जो मुझे गुलाब और कार्ड भेजती थी ये वही थी। मेरा पूरा शरीर सुन्न पड़ चुका था उस फटे हुए डायरी को पकड़े हुए मैं उसके बैड पे बैठ गया और बस बैठा ही रह गया मुझे कोई सुध नही था । अचानक से दरवाजे से वो अंदर आयी अंदर आते ही उसने मेरे हांथो से वो डायरी छीन ली। हे भगवान ये तुमने क्या किया जो मैं कभी नही चाहती थी वही क्यो हो गया। तुम मुझसे मोहब्बत करती थी ? अब इन सब बातों के लिए कोई जगह नही । तुम मुझसे मोहब्बत करती थी तुमने मुझसे कभी कहा क्यो नही ?
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मेरी तरफ देखो संगीता मुझे जवाब दो ? देखो मैं इस वक़्त तुम्हारे किसी सवाल का जवाब नही देना चाहती बस तुम जाओ यहाँ से । तुम्हे मेरे सवालों का जवाब देना होगा ? आग लगा दो अपने सभी सवालो को । आग ही तो लगी हुई है मेरे अंदर देखो किस कदर धु धु करके मैं जल रहा हूँ। तुमने मुझे बताया क्यो नही की तुम भी मुझसे मोहब्बत करती हो मैंने बताया था तुम्हे मगर तुम किसी और से मोहब्बत करते थे और ये बात तुमने खुद कहा था। मैं तुमसे मोहब्बत करता हूँ पागल इसी लिए कभी उन कार्ड्स का जवाब मैंने नही दिया कोई पागल ही होता जो इस तरह के कार्ड का जवाब देता। अब सोचता हूँ काश मैं वो पागल होता। मैं हमेशा डरती थी कि अगर तुम्हें ये बात पता चली तो पता नही क्या सोचते और क्या करते शायद हमारी दोस्ती ही दाओ पे न लग जाये बस यही डर मुझे तुमसे अपने दिल की बात कहने से हर बार रोकता था मैं तो उसी दिन तुमसे कहने वाली थी जिस दिन तुम और मैं पार्क गए हुए थे पर कह न सकी तुमसे सीधे इसी लिए मैंने कार्ड पर लिख भेजा तुम्हे। या खुदा ये कैसा इंसाफ है तेरा । तुम भी उसी बात से डरती रही जिससे मैं डर कर कभी तुमसे कह न सका काश काश मैं तुमसे कह पाता की मैं सिर्फ और सिर्फ तुमसे मोहब्बत करता हूँ सिर्फ तुमसे।
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वो रोती रही मैं चाह कर भी अपने अश्क रोक नही पा रहा था तभी। आंटी अंदर आ गयी अरे ये क्या तुम दोनों रो रहे हो ? कुछ नही माँ बस आप सब से और इससे दूर जा रही हूं इस लिए । पागल हो बिल्कुल तुम दोनों अरे तू क्यो रोये जा रहा है अरे बेटा ये तो आज नही तो कल होना ही था चल बाहर चल सब लोग बिदाई के लिए तैयार है। बस एक मिनट आंटी आप चलो हम आते है। वो तो ठीक है पर अब रोना बंद कर । आंटी बाहर गयी और जैसे ही मैंने उसे छुआ बस वो लिपट गयी ।
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ज़ार ज़ार होके रोते है दो फूल
एक दूजे की बाहों में
किसी के अरमानों का फूल
किसी के घर को सजाने में
कौन कहता है के क़यामत में अभी देर है
ये मंज़र देख लो क्या ये क़यामत से कम है
नही रुकता ही नही सैलाब इन आँखों का
एक तूफान जो कैद था जो जज्बातों का
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वो विदा हो गयी अपनी बेहिसाब यादों को मुझे सौप कर कुछ पल अपने आँचल में वो समेटे हुए। जो हर कदम पड़ते उसके अपनी रुखसती की और कोई ज़रा ज़रा टूट कर रेज़ा रेज़ा हुआ जाता है उस रात बहुत रोया था वो उस रात बेहिसाब बारिश भी हुई वो छत पे बारिश मैं भीगता रहा रात भर अपने आंसू जमाने से छुपाये हुए उस रात शायद खुदा की खुदाई भी अश्कबार हुई। फिर वो कभी न रोया वो खुद ही खुद के अंदर कैद हुआ। एक माँ है जो थकती ही नही दुआओ पे दुआएं मांगते उसके लिए पर ये दुआएं है कि उसपर असर करती ही नही एक डर ने दो जहाँ उजाड़ डाली एक तेरा जहाँ एक मेरा जहाँ जल कर ख़ाक हुआ।PicsArt_05-20-12.08.38
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Md. Danish Ansari

30 विचार “बारिश 6…….&rdquo पर;

  1. बहुत ही बखूबी से आपने शब्दों का इस्तेमाल किया है और सब कुछ अच्छे से लिखा है। फिल्म की स्टोरी समाप्त हो गया लेकिन कहानी को देखते हुए शानदार नावेल लिखा जा सकता है। क्योंकि रियल लाइफ की कहानी तो यही से शुरू हो ती है। वारिश7केसाथसाथ शीर्षक भी कहानी के हिसाब से ही होना चाहिए। लिखते रहिये ये कहानी।

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      1. “जिंदगी की यादगार बारिश” नाम हो सकता है। आपके कहानी अनुसार नावेल का शीर्षक कैसा है? मेरे विचार से एडिट कर बारिश की जगह यही शीर्षक कर दीजिए। सूट करेगा। मैंने साहित्य (हिंदी से

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      2. वैसे आप को पसंद है तो कोई बात नहीं है। लेकिन समझाती हूँ आगे नावेल रूप देना है तो शीर्षक चेंज करना पड़ेगा क्योंकि बारिश शब्द कहानी के लिए अच्छा था। नावेल मतलब पतली या मोटी बुक बन जाएगी जिसके लिए मैटर ज्यादा से ज्यादा चाहिए। जब बड़ा लिखोगे तो शीर्षक से पता चलना चाहिए। आप को पहले खत्म करने को कहा क्यों कहानी 6,7पन्ने से बड़ी नहीं होती है। और बारिश शब्द रहेगा ही केवल शीर्षक बड़ा इस लिए किया गया है कि आगे लिखना है मैटर मिल सके। जैसे जिंदगी में आपको हर पहलू पे लिख सकते होऔर अपने आसपास के घटनाओं को जोड़ सकते हैं चाहे हकीकत हो या काल्पनिक। कहानी के लिए बहाना कहा जा सकता है लेकिन आप में हकीकत और कल्पना का ताल मेंलअच्छा बैठा लेते हैं जो आपका गुण है।

        दूसरे तरह से समझे। जैसे किताब खरीदने जाते हो तो शीर्षक देखकर ही चुनाव करोगे तो तो लगेगा कि केवल वारिशके बारे में लिखा होगा छोडो। मोटा मोटी समझे जैसे लोग कहते फस्र्ट इम्प्रेशन इज लास्ट इम्प्रेशन। बस समझ लिजिए यही भूमिका है शीर्षक की।

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      1. विष्णु लिख सकते हैं। क्योंकि आपमें एक कहानी को दूसरी से जोड़ने की कला है। जो आप का सबसे बड़ा गुण है। मैं नावेल लिखना चाहती थी लेकिन समझाती अभाव और मैं कल्पना नहीं कर पाती। इसलिए मेरा सपना अधूरा रह गया। अब जब आप में कला है तो सुझाव दिया है क्या पता आप के लेखनी से मेरा सपना पूरा हो जाय अब बेटा कहा है तो अधूरे सपने को बच्चे ही पुरा करते हैं। मानों तो देव नहीं मानो तो पत्थर।

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  2. आभास हो रहा था संगीता पर।ऐसे ही होता है भविष्य की चिंता वर्तमान के साथ साथ भविष्य भी बर्बाद कर देती है। बढ़िया सन्देश एक दर्द के साथ।मैंने भी कुछ मिलता जुलता लिखा है शायद पसन्द आये—/-https://madhureo.wordpress.com/2017/04/04/siskiyaan/

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  3. बड़ी दर्द भरी दास्तान है. अच्छा लिखा है आपने. शायद इसलिये कहते है –
    कल करो सो आज…
    समय पर नहीँ कही गई बात बाद में अफसोस का कारण बनती है.

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  4. ज़ार ज़ार होके रोते है दो फूल

    एक दूजे की बाहों में

    किसी के अरमानों का फूल

    किसी के घर को सजाने में

    कौन कहता है के क़यामत में अभी देर है

    ये मंज़र देख लो क्या ये क़यामत से कम है

    नही रुकता ही नही सैलाब इन आँखों का

    एक तूफान जो कैद था जो जज्बातों का
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    बारिश शीर्षक से अंतः वेदना को बखूबी शब्दों में गढ़ा है ।
    साथ ही उर्दू मिश्रित शैली लाजवाब है ।

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    1. kyoki sahi mayno me is kahani ka end acha nhi hai par ab main yah dekhne ki koshish kar raha hun ki shayad is kahani ka end achcha na hone ke bawajud yah acha hai par yah baat mujhe waqt ke sath dhire dhire samajh me aayi

      mujhe is baat ka behad afsos bhi raha hai ki pathako ko unke man ka end nahi mila par sach yahi hai ki is kahani ka ending yahi hai

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