एक तौफा मेरे प्रेम और अटूट विश्वास का

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तेरी रुखसती का वक़्त था और मुझमें खामोशियों का आलम था
इन बेचैनियों के बीच ख्याल आया तुझे यादगार तौफा देने का
यूं तो अंदर से मैं टूट चुका था मगर फिर भी कुछ जोड़ना चाहता था
वो रिस्ता प्रेम सदभाव विश्वास से बनाया था उसे आसानी से टूटने नही दे सकता था
इसी ख्याल ने मेरे अंदर ख्यालो और सवालों का तूफान ला खड़ा किया
सवालों के जवाब ढूंढता और वो खो जाता यही हर बार मेरे साथ होता
बस यही सोचता रहा तुझे तौफा कैसा दूँ जिससे तू मुझे याद कर लिया करे
मैं अपनी यादों से तो तुम्हे कुछ दे नही सकता था ये नई सुरुआत के लिए सही नही था
क्योकि आगे का सफर में तुम्हारा कोई और ही हमसफर था
यूही बाज़ारो में जो हम भटकते रहे तुम्हारे तोहफों की तलाश में
एक आवाज़ कानो में मीठी सी पड़ी जो पलट कर देखा तो तलाश पूरी हो गई।
झूमर ये तौफा है तुम्हारा, मेरे प्रेम और अटूट विश्वास का इसकी कीमत
कुछ भी नही यह बादशाह को मिट्टी के धेले के समान है।
फिर भी ये झूमर बेहद अनमोल है इसके जैसा दूजा कोई नही
जो अगर तुम मेरी नज़रो से देख सको तो तुम्हे इसका एहसास होगा।
जब तुम एक नए बसेरे पे जाओगी और उसे सजाओगी
तुम इसे अपने घर के बाहरी खिड़की पे लटका देना।
जब भी हवा इससे टकराए और इसकी मिट्ठी आवाज़ तुम्हारे कानो तक जाए
रसोई में काम करते हुए तुम्हे इसकी आवाज़ से तुम्हे मेरी याद आ जाये।
तुम्हे इस बात पर पूरा यकीन रहे कि दूर कही एक दोस्त है
जो तुम्हारी हर खुशी और सलामती की दुआ करता है।
अगर तुम देख पाओ तो तुम्हे इस बात का यकीन होगा
ये झूमर मामूली होते हुए भी बेहद अनमोल उपहार तुम्हे होगा।
उम्मीद है तुम इस झूमर को अपने साथ रखोगे और
मेरे ज़ज़्बातों को समझ लोगे और उसे हंस के भूला दोगे।
मेरी यादों को भुलाना जरूरी है पर खुद को तुम्हे याद दिलाना भी जरूरी है
तुम्हारे गृहस्थ जीवन मे मेरी वजह से कोई कलह न होने पाए।
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सच है कि तौफा को चंद रुपयों में तोला नही जा सकता क्योकि
कभी कभी जो मंहगा है वो सस्ता है और जो सस्ता है वो महंगा है!
Md Danish Ansari

2 विचार “एक तौफा मेरे प्रेम और अटूट विश्वास का&rdquo पर;

    1. बस कुछ यादें है और कुछ एहसास उन्हें लफ्जों का सहारा देने की छोटी छोटी कोशिश है ये मेरी खैर आपको पसंद आया मुझे अच्छा लगा सुक्रिया आपकी होसला अफजाई के लिए रजनी जी !

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